tag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post1103376716446372891..comments2023-09-06T03:33:21.690-07:00Comments on behtar duniya ki talaash: माध्यमों के ध्वस्त पुल और पुरस्कारों की बाढ़ ramesh upadhyayhttp://www.blogger.com/profile/05054633574501788701noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-87963414699701293872013-04-11T09:15:11.956-07:002013-04-11T09:15:11.956-07:00"साहित्य आम जनता के बल पर ही जीवित और जीवंत र..."साहित्य आम जनता के बल पर ही जीवित और जीवंत रह सकता है।" ..सही हैं ।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/11909480380442669988noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-59116771960990137812012-12-18T03:31:23.383-08:002012-12-18T03:31:23.383-08:00आपकी बातें सही हैं । पुरस्कारों ने साहित्य के स्तर...आपकी बातें सही हैं । पुरस्कारों ने साहित्य के स्तर पर सवाल खडे किये हैं । देने वालों और लेने वालों की नीयत पर भी । पर ऐसे लेखकों की कमी नही जो पैसा खर्च कर हल्के स्तर की रचनाओं को बाजार में ले आते हैं । छपाई मँहगी होने के बावजूद ऐसी किताबों की बाढ आई हुई है । ऐसी पत्रिकाएं भी खूब चल रही हैं जो हल्की हैं और बुरी तरह बाजारवाद की शिकार हैं । ऐसे में कुछ ही प्रकाशक और कुछ ही सम्पादक हैं जो आज भी स्तर कायम रखे हैं पर उन तक भले ही प्रतिॆभाशाली हो पर आम लेखक की पहुँच नही है । सवाल बहुत सारे हैं जिनके उत्तर बाकी हैं ।गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-57851762044972222112012-12-14T19:59:47.496-08:002012-12-14T19:59:47.496-08:00bazar aur prakashak ke sath puraskaron ki rajneeti...bazar aur prakashak ke sath puraskaron ki rajneeti aur pathak ki upeksha ne kitabon ki duniya se sahitya aur samman jaise shabdon par prahar kiya hai...lekh behad flow me hai aur kai zaroori sawalon ko uthata hai.प्रज्ञाhttps://www.blogger.com/profile/03031155939204863000noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-34911743997822857772012-12-14T17:36:45.841-08:002012-12-14T17:36:45.841-08:00आपकी बातें सही हैं। लेकिन पुरस्कारों को न कहने का ...आपकी बातें सही हैं। लेकिन पुरस्कारों को न कहने का काम मुश्किल है।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-14176735538607245622012-12-11T19:37:38.166-08:002012-12-11T19:37:38.166-08:00पुस्तकों को भी असली आनन्द अपने पाठकों तक पहुँचने म...पुस्तकों को भी असली आनन्द अपने पाठकों तक पहुँचने में आता होगा, न कि सरकारी अल्मारियों में सजने में।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-53341377324196723872012-12-11T09:29:41.842-08:002012-12-11T09:29:41.842-08:00आपका यह कहना सत्य है कि "साहित्य आम जनता के ब...आपका यह कहना सत्य है कि "साहित्य आम जनता के बल पर ही जीवित और जीवंत रह सकता है।" आज पहले के मुकाबले साहित्य में आम आदमी अधिक दिखाई पड़ता है, लेकिन उस आम आदमी के जीवन में साहित्य का कितना महत्व है, यह देखना जरूरी है। ऐसा नहीं है कि साहित्य के पाठक नहीं हैं। वास्तविकता यह है कि साहित्य सही ढंग से पाठक तक नहीं पहुँच रहा है। साहित्यकारों को इस दिशा में सोचने की आवश्यकता है।<br />- शून्य आकांक्षी Shoonya Akankshihttps://www.blogger.com/profile/06648329056370985240noreply@blogger.com