tag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post436930793526215566..comments2023-09-06T03:33:21.690-07:00Comments on behtar duniya ki talaash: प्रतिसृष्टिramesh upadhyayhttp://www.blogger.com/profile/05054633574501788701noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-35205336508462946122013-12-19T08:32:37.791-08:002013-12-19T08:32:37.791-08:00बेह्तरीन कहानी .पौरणिक आख्यानों और पात्रों की जो व...बेह्तरीन कहानी .पौरणिक आख्यानों और पात्रों की जो विवेकपूर्ण और तर्क सम्मत व्याख्या आपने की है वो लाजवाब है . दरअसल ये कहानी से अधिक पौराणिक सन्दर्भों पर आलेख है जिसे बड़ी खूबसूरती से कथा सूत्र मे पिरोया गया है .यहां कथाकार के अन्दर का अध्यापक भी जोरदार उपस्थिति दर्ज़ कराता है .ये कहानी अनायास ही नरेन्द्र कोहली का स्मरण करा देती है .मैने उनको पढ़ा नहीं है .पर अब उनको भी पढ़ने की उत्कंठा तीव्र हो गयी है.बात अपनीhttps://www.blogger.com/profile/05725525971715117550noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-20878788572514508162013-12-18T18:59:51.808-08:002013-12-18T18:59:51.808-08:00सुबह सुबह एक अच्छी कहानी (अच्छी की तात्कालीन परिभा...सुबह सुबह एक अच्छी कहानी (अच्छी की तात्कालीन परिभाषा की खिड़की से बाहर देखती व् ताज़ी हवा महसूस कराती )एक सार्थक कहानी | अभी तक ‘’अच्छी ‘’ कहानियों को उनके अच्छाई की जिन चौखटों के भीतर पढ़ा यानी कहानी के समसामयिक सर्वाधिक ज्वलंत विषय ‘’दलित साहित्य ‘’(प्राय्ह दलित लेखकों के द्वारा रचा गया ) और स्त्री विमर्श से सम्बंधित स्त्री प्रताडनाओं ,धारणाओं,आव्हान करती या राजनैतिक अराजकताओं व् वर्गगत पीडाओं की कहानियां )उनसे अलग लेकिन पौराणिक प्रकरणों के ज़रिये नए अर्थ तलाशती कहानी |नयापन भी नए की तात्कालीन अर्थों से अलग (शायद कहानी के लिए चुने गए नए विषय के कारन )|लेखक ने दलित साहित्य को उत्तर आधुनिक साहित्य कहा है |नायक शिखर सुकुमार का परिवार ..खुद कहानी का एक मज़बूत पक्ष है वो ऐसे कि सुकुमार घोषित रूप से स्वयं दलित लेखक होते हुए दलित लेखन के साहित्यिक परकोटे को तोड़ते हैं चुनौती देते हैं इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं पहली कहानी का मूल लेखक आधुनिक दलित साहित्य की उस मान्यता को खारिज करना चाहता है जिसमे दलित लेखक दलित इतिहास और समस्या से आगे कुछ भी लिखने में कोताही बरतते हैं दुसरे, सुकुमार के चार सदस्यीय परिवार जिनमे उनकी पत्नी दमयंती जो स्वयं को दलित मानते हुए और दलितों को व्यवस्था द्वारा प्रदत्त सभी सुविधाओं का समर्थन उसी तरह पारंपरिक दलीलों के चलते करती है जो वतमान में एक आम दलित लेखक की भावनाओं ,कुंठाओं और क्षोभ तथा उलाहनों का प्रतिनिधित्व करती है |(दलित हैं तो दलित वाला लेखन करें –एक वाक्य)....सुकुमार के दौनों कान्वेंट में शिक्षा पा रहे बेटों के वार्तालाप को एक तरफ लेखक पीडी की नई पौध की तटस्थता को दिखता है दूसरी और एक छोटी सी झलक इस आने वाली पीढी के इस दलित-ब्राह्मण संघर्ष के प्रति समझदारी भरी तटस्थ सोच को भी प्रदर्शित करता है इस लिहाज से ये कहानी न सिर्फ एतिहासिक या पौराणिक विषयों की बहस तक सिमटी है बल्कि आने वाली पीढ़ियों को इस बेहूदा और जातिवादी संघर्षों को खारिज करती हुई भी चलती हैं | कहानी में कुछ एतिहासिक सन्दर्भों सहित मज़बूत उदहारण भी दिए गए हैं जैसे वाल्मीकि शूद्र थे लेकिन रामायण दलित साहित्य नहीं ..ये और इस तरह के कई एतिहासिक सन्दर्भ जो चालू मिथकों को तोड़ने पर विवश करते हैं |बीच में त्रिशंकु सहित कुछ एतिहासिक घटनाएँ तथ्य कही कहीं लम्बे लगते हैं लेकिन वो संभवतः कहानी को ठोस रूप प्रदान करने और उसके स्तम्भ वाक्य रहे हों और ज़रूरी हों ...लेकिन कहानी बहुत अलग ,आम विषयों से दूर..इसीलिये पाठक को एक ताजेपन का अहसास कराती ...| बतौर एक पाठक कहानी बहुत अच्छी लगी |वंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.com