tag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post7029563740673790738..comments2023-09-06T03:33:21.690-07:00Comments on behtar duniya ki talaash: भविष्योन्मुखी कहानी का मतलबramesh upadhyayhttp://www.blogger.com/profile/05054633574501788701noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-24608428255937815852011-07-13T11:04:51.109-07:002011-07-13T11:04:51.109-07:00सर जिन नामों की आपने बात की है उसके सन्दर्भ में अप...सर जिन नामों की आपने बात की है उसके सन्दर्भ में अपने आलेख का यह हिस्सा पढ़ने की गुजारिश करूँगा <br /><br />''मेरे ही नहीं किसी भी रचनाकार के लिये उसकी परंपरा एक ऐसा तत्व है जिसकी आप चाहे जितनी आलोचना कर लें, उससे मुक्त नहीं हो सकते। हिन्दी का साहित्य चूंकि उपनिवेशवाद में देशी साहित्य के तौर पर विकसित हुआ इसलिये प्रतिरोध का एक तत्व हमेशा ही उसमें प्रभावी तौर पर रहा है। लेकिन इसकी अपनी सीमायें रही हैं और अपनी ख़ूबियां। मेरे लिये परंपरा का अर्थ केवल देशज़ भर नहीं है। मेरे लिये जितने प्रेमचंद, यशपाल, दूधनाथ सिंह, अमरकांत, मुक्तिबोध, केदारनाथ अग्रवाल, शमशेर, नागार्जुन, गोरख, पाश, फैज आदि अपने हैं उतने ही गोर्की, टालस्टाय, चेखव ,मार्खेज, ब्रेख्त, नेरुदा, एंत्सेबर्गर, रिल्के, लोर्का, मार्टिन एस्पादा आदि भी। और इस परंपरा से मैने साहित्य को प्रतिरोध के एक हथियार के रूप में प्रयोग करना सीखा है। इस परंपरा ने मुझे एक बेहतर दुनिया का स्वपन देखना सिखाया है और यह भी कि एक रचनाकार के लिये यह स्वप्न देख भर लेना काफ़ी नहीं होता है बल्कि उसे पूरा करने के लिये हर तरह की लड़ाई के लिये तैयार होना और ज़रूरत पड़ने पर प्रत्यक्ष लड़ाईयों में भागीदार होना भी ज़रूरी होता है। इसी से जोड़कर अगर मैं आपके एक और सवाल का उत्तर दूं तो विचार बोध के बिना कोई साहित्य रचा जा सकता है ऐसा कम से कम मैं नहीं मानता। प्रश्न केवल यह है कि वह विचार बोध किस प्रकार का है? वह किसके पक्ष में है और किसके विरोध में? मेरा मानना है कि जनता के पक्ष में लिखा गया साहित्य ही सच्चा साहित्य होता है। और इस रूप में देशकाल की समझ के लिये, एक बेहतर और शोषणमुक्त समाज के निर्माण के लिये आज भी मुझे वामपंथ या मार्क्सवाद सबसे बेहतर विचार सरणी लगती है। इसीलिये इस विचार के प्रति तार्किक प्रतिबद्धता मुझे लेखन के लिये महत्वपूर्ण लगती है। ''Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-82623152532038976342011-06-17T19:53:09.591-07:002011-06-17T19:53:09.591-07:00अच्छी कही आपने हिन्दी कहानी की रामकथा -मगर हिन्दी ...अच्छी कही आपने हिन्दी कहानी की रामकथा -मगर हिन्दी कहानीकार और समीक्षक/आलोचक अभी भी इतने पोंगे क्यों बने हुए हैं कि विज्ञान गल्पों /कथाओं (साईंस फिक्शन /फैंटेसी ) की चर्चा तक नहीं करते !<br />आप के इस पूरे आलेख में बस भविष्यमुखी कहानियों का जिक्र तो आया मगर बस पासिंग रिफरेन्स के रूप में ही ..<br />वैज्ञानिक कहानियां ही दरअसल सही अर्थों में भविष्यमुखी कहानियों का प्रतिनिधित्व करती हैं ....<br />इनकी ओर भी ज़रा नजरे ईनायत हो जाय गुरु घंटालों के ...Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-65138913176370011362011-06-17T18:11:02.045-07:002011-06-17T18:11:02.045-07:00युवा और चिरयुवा का भेद छोड़ साहित्य सेवानिरत हो जा...युवा और चिरयुवा का भेद छोड़ साहित्य सेवानिरत हो जायें, सुन्दर विश्लेषण।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com