tag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post7058656131652550849..comments2023-09-06T03:33:21.690-07:00Comments on behtar duniya ki talaash: प्रेमचंद को हम बार-बार ‘पहली बार’ पढ़ते हैंramesh upadhyayhttp://www.blogger.com/profile/05054633574501788701noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-35067343784999404842013-08-01T01:08:25.609-07:002013-08-01T01:08:25.609-07:00बेहतरीन आलेख। न केवल इसलिए कि कोई यह जान पाये कि प...बेहतरीन आलेख। न केवल इसलिए कि कोई यह जान पाये कि प्रेमचंद को बार बार पढे जाने के माने क्या हैं? बल्कि इसलिए भी कि कोई ये जान पाये कि आखिर जिम्मेदार कलमकारी किसे कहते हैं। अव्यक्त अभिषेक https://www.blogger.com/profile/02974394510287837627noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-1255847428305698042013-07-31T23:48:04.864-07:002013-07-31T23:48:04.864-07:00आदरणीय ,प्रेमचन्द केवल प्रेमचन्द ही हुए हैं आज तक ...आदरणीय ,प्रेमचन्द केवल प्रेमचन्द ही हुए हैं आज तक तो । उनके पात्र जितने सहज स्वाभाविक हैं, ईमानदारी से अपनी अच्छाइयों व कमजोरियों के साथ वैसे पात्र दुर्लभ हैं । वे न तो आदर्श का ढिंढोरा पीटते हैं न ही नग्न और भौडा यथार्थ प्रस्तुत करते हैं जैसा कि चर्चित होने के लिये कई लेखक अश्लीलता की हदें पार करते देखे गए हैं । ऐसे लोग प्रेमचन्द को कैसे समझ सकते हैं । आपने उनके लिये आदर्शोंन्मुख यथार्थ शब्द सही कहा है । 'बेहतर दुनिया'का बेहतर आलेख ।<br />गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-91234124525444670342013-07-31T20:21:50.809-07:002013-07-31T20:21:50.809-07:00सच कहा आपने, हर कहानी कई बार पढ़ने का मन करता है।सच कहा आपने, हर कहानी कई बार पढ़ने का मन करता है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-64839984695138721672013-07-31T10:42:42.291-07:002013-07-31T10:42:42.291-07:00हिंदी साहित्य-समीक्षा में यथार्थवाद और आदर्शवाद को...हिंदी साहित्य-समीक्षा में यथार्थवाद और आदर्शवाद को दो ध्रुव मानकर समीक्षक अपनी बात प्रस्तुत करते रहे हैं । आपने प्रेमचंद के आदर्शोन्मुख यथार्थवाद की बात कहकर एक सच्ची द्रष्टि प्रदान की है । मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ कि प्रेमचंद 'आदर्श' और 'यथार्थ' को परस्पर विरोधी नहीं मानते थे और उन्होंने ‘नग्न यथार्थवाद’ के विरुद्ध ‘आदर्शोन्मुख यथार्थवाद’ की स्थापना की थी ।<br />आपके द्वारा लिखे गए इस बेहतरीन आलेख के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई । <br />Shoonya Akankshihttps://www.blogger.com/profile/06648329056370985240noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-52539721876796142422013-07-31T09:58:38.384-07:002013-07-31T09:58:38.384-07:00‘‘एक मार्क्सवादी के रूप में मेरे कलाकार ने सीखा है...‘‘एक मार्क्सवादी के रूप में मेरे कलाकार ने सीखा है कि सिर्फ वही सच नहीं है, जो सामने है, बल्कि वह भी सच है, जो कहीं दूर अनागत की कोख में जन्म लेने के लिए कसमसा रहा है। उस अनागत सच तक पहुँचने की प्रक्रिया को तीव्र करने के संघर्ष को समर्पित मेरे कलाकार की चेतना अगर तीसरी आँख की तरह अपने पात्रों में उपस्थित नजर आती हो, तो यह मेरी सफलता है।’’ <br /><br />_______________________________________<br /><br /><br /><br />एक गम्भीर आलेख है। प्रदीप कांतhttps://www.blogger.com/profile/09173096601282107637noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1496071818736613491.post-20335803283254968542013-07-31T09:44:46.360-07:002013-07-31T09:44:46.360-07:00बहुत ही बढिया लेख है यह. एक तरह से लेख के चौखटे को...बहुत ही बढिया लेख है यह. एक तरह से लेख के चौखटे को तोड़ता हुआ. प्रेम चंद को समझने के लिए ज़रूरी दृष्टि देता हुआ, यथार्थवाद की यांत्रिक समझ रखने वालों में जिसका लोप हो गया लगता है. मेरी बधाई स्वीकार करो. दिल से.मोहन श्रोत्रियhttps://www.blogger.com/profile/00203345198198263567noreply@blogger.com