Thursday, March 12, 2009

नई पीढ़ी और नवलेखन के बारे में

जब मैं युवा लेखक था...

हिन्दी साहित्य में आज एक बार फिर युवा पीढ़ी और नवलेखन चर्चा में है। मुझे अपनी युवावस्था याद आती है। मेरी पहली कहानी 'एक घर की डायरी' अजमेर से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका 'लहर' के सितम्बर, १९६२ के अंक में छपी थी। उसी के जुलाई, १९६१ के अंक में प्रसिद्ध आलोचक शिवदान सिंह चौहान ने लिखा था :

"हमारे कुछ नए आलोचक, और उनकी देखा-देखी विचारहीन अध्यापक, नयी और पुरानी पीढ़ी की चर्चा करने लगे हैं। कुछ इस खतरनाक अंदाज़ में, मानो पुरानी पीढ़ी के लेखक सारे के सारे दकियानूसी नज़रिए के हों और नए लेखक सारे के सारे युग की नवीनतम चेतना के वाहक हों।...मुझसे पूछिए, तो मैं साहित्य में नई या पुरानी किसी भी पीढ़ी का न कायल हूँ, न हमदर्द और न मुरीद। मैं सिर्फ़ प्रतिभा का कायल हूँ, चाहे लेखक नई पीढ़ी का हो या पुरानी। और जीवन के प्रति व्यापक मानववादी प्रगतिशील दृष्टिकोण का हामी हूँ, इसलिए ऐसा दृष्टिकोण अगर पुरानी पीढ़ी के लेखन में मिले तो, और नई पीढ़ी के लेखन में मिले तो, मैं उसका दोस्त, हमदर्द और हमनवा हूँ।...नई और पुरानी दोनों पीढ़ियों में कुछ प्रतिभावान हैं, तो अधिकतर प्रतिभाहीन लेखक हैं, जैसा कि हर ज़माने में रहा है, और दोनों पीढ़ियों में कुछ उदार और व्यापक मानवीय दृष्टिकोण वाले हैं, तो कुछ संकीर्ण- हृदय और मानवद्रोही दृष्टि वाले लेखक हैं। नए 'शिल्प-सौंदर्य', 'कथन-वैचित्र्य' आदि का इजारा न नई पीढ़ी के लेखकों के पास है और न पुरानी पीढ़ी के लेखकों के पास, न मानववादी दृष्टिकोण वालों के पास है और न मानवद्रोही दृष्टिकोण वालों के पास। इसलिए आप ख़ुद देख सकते हैं कि ऐसे समष्टि-सूचक शब्दों (नई कहानी या नई पीढ़ी) के प्रयोग, जिनका कोई तात्विक आधार नहीं है, कितना बड़ा घपला पैदा कर देते हैं।"

क्या ये बातें आज के नए पीढ़ीवाद के सन्दर्भ में सहसा पुनः प्रासंगिक नहीं हो उठी हैं?

--रमेश उपाध्याय

7 comments:

  1. नए और पुराने की बहस- यह एक महत्वपूर्ण बिन्दु हो सकता है जहां से बहस आगे बढ सकती है। यहां यह मुद्दा भी विचारणीय है कि क्या जो कुछ भी, किसी भी दौर में नया आता है, उसके उस नएपन में पुराने हो जा रहे कि कोई भूमिका है या नहीं। या वह नया अपने पूर्व के उस पुराने का निषेध है और यदि निषेध भी है तो क्या बिना उस पुराने के उसका नया होना संभव था।

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  2. आपका ब्लाग देखना एक सुखद अनुभव है। अभी-अभी इस लेख से पहले के भी सारे लेख पढ़े। बहुत अच्छा लगा। आशा है आप नियमित लेखन करते रहेंगे।
    आपके द्वारा उठाई गयी मुझे लगता है हर काल में सही होगी।

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  3. सही कहा था शिवदान जी ने।
    पिछला कमेन्ट इस बार भी मौज़ू होगा।
    क्यो ना कथन मे इस पर बहस चलायी जाये?

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  4. आपकी बात सही है । अच्छे लेखक सभी पीढ़ियों में हुए हैं । चर्चा का विषय बहुत प्रसांगिक है ।

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  5. यहां आना अच्छा लगा। आपकी ब्लागजगत में उपस्थिति बहुत कुछ सकारात्मकता का एहसास कराएगी। अच्छा विमर्श चल रहा है।

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  6. Ramesh Ji
    aapne behtar duniya ke liye behtar baat uthaee hai. aaj hanari sahityik soch vichar ko vargoN meN vibhajit kar ke dekhne ki ho gaee hai aur isi 'chetna' ke chalte aapne aapne gadhoN aur mathoN ka nirman ho gaya hai.Sahitya ke anek sudhi rakshkoN ko bina jhanda uthaye sahitya seva ka anand nahi aata hai, islye woh samay samay par ek ke baad ek jhanda uthaye rakhte hain-- Prem Janmejai

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  7. आपने प्रासंगिक प्रश्‍न उटाया है. बात आगे बढ़े तो धुंधलका कुछ छंटे. ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत.

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