Friday, September 18, 2009

पुरस्कारों की निरर्थकता

अब हकीकत सामने आने लगी है

पुरस्कारों की निरर्थकता अब सामने आने लगी है। वे किन आधारों पर दिए जाते रहे हैं, लोग जानते तो पहले भी थे, पर अब खुलकर बताने भी लगे हैं। और वे ही लोग, जो उनके निर्णायक रहे हैं!

इस बार का भारत भूषण अग्रवाल कविता पुरस्कार 'कथन' में प्रकाशित मनोज कुमार झा की कविता 'स्थगन' को मिला है। लेकिन जिस दिन दिल्ली में यह पुरस्कार दिया गया, उसी दिन से पुरस्कार पर प्रश्नचिन्ह भी लगने शुरू हो गए। उसी दिन पुरस्कार पर केंद्रित पुस्तक 'उर्वर प्रदेश-३' का लोकार्पण किया गया, जिसमें इस पुरस्कार से पुरस्कृत कवियों की कविताएँ संकलित हैं। मैंने वह संकलन देखा नहीं है, लेकिन १५ सितम्बर, २००९ के 'जनसत्ता' दैनिक में पढ़ा कि संकलन की भूमिका विष्णु खरे ने लिखी है, जो स्वयं पुरस्कार के निर्णायकों में से एक रहे हैं। भूमिका का शीर्षक है 'एक पुरस्कार के तीन दशक : एक विवादास्पद जायजा'। 'जनसत्ता' के अनुसार भूमिका में लिखा है--"अन्य पुरस्कारों सहित भारत भूषण पुरस्कार पर भी हर वर्ष जाति, क्षेत्र, बोली, आस्था, विभिन्न किस्मों के अन्तरंग संबंधों, रसूख, विनिमय आदि के सच्चे-झूठे संदेह किए जाते रहे हैं।"

इस पुरस्कार के निर्णायकों में विष्णु खरे के अलावा नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, अशोक वाजपेयी और अरुण कमल शामिल हैं। 'जनसत्ता' लिखता है--"विष्णु खरे ने अपनी भूमिका में जहाँ दूसरे निर्णायकों के निर्णय पर संदेह किया है, वहीं कई कवियों की कविताओं को लेकर भी संदेह खड़े किए हैं और कइयों के उम्मीद पर खरा नहीं उतरने की बात कही है। उन्होंने तमाम पुरस्कृत कवियों की कविता (जिस पर पुरस्कार दिया गया) का जमकर पोस्टमार्टम किया है। खरे की टिप्पणी पर कवियों के बीच भी उतनी ही तीखी प्रतिक्रिया हुई है। कुछ कवि काफी नाराज़ बताये जाते हैं।"

१९८६ में पुरस्कृत कवि विमल कुमार को पुरस्कार देने का निर्णय ख़ुद खरे ने किया था, लेकिन अब उन्होंने लिखा है--"मुझे अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि विमल कुमार ने जो उम्मीदें 'सपने में एक औरत से बातचीत' में जगाईं थीं, वे उन्हें, मेरे विचार से, अपनी बाद की अधिकांश कविताओं में निभा नहीं पा रहे है।"

उदय प्रकाश के बारे में विष्णु खरे का कहना है--"कहानी लेखन में असाधारण ख्याति और सफलता कमाने के बावजूद कवि के रूप में भी स्वीकृत होने की उनकी त्रासद महत्वाकांक्षा उनसे कविता में अतिलेखन करवा रही है।"

विष्णु खरे की इस आलोचना से पुरस्कृत कवि ही नहीं, पुरस्कार देने वाले भी आहत हैं। अब बेचारे पुरस्कृत कवि तो विमल कुमार की तरह पुरस्कार लौटाने और विष्णु खरे की "आलोचना की तानाशाही" की आलोचना ही कर सकते हैं, पर पुरस्कार देने वाले खरी-खरी कहने वाले खरे को निर्णायक मंडल से निकाल देने का दंड देने में समर्थ हैं! और मंडल के पुनर्गठन के नाम पर खरे को निकालने का फ़ैसला उन्होंने शायद कर भी लिया है!

जो भी हो, इससे हिन्दी आलोचना, मूल्यांकन, सम्मानों और पुरस्कारों के बारे में कुछ सच्चाई तो खुलकर सामने आई ही है!

--रमेश उपाध्याय

5 comments:

  1. is sandarbh me meri tippani bhi dekhen

    http://naidakhal.blogspot.com/2009/09/blog-post_12.html

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  2. puraskar hi nahin lekhkon ki mahatwakanshka unse ajkal aise aise kam karva rahi hai jin sari baton ke khilaph hi unka pura lekhan hota hai. Lekhan or jivan men bahut jyada phank aa chuki hai.

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  3. अब कौनसी टिप्पणी पुरुस्कार देने और लेने वालों के घावों पर मरहम लगाएगी?

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  4. यह सही है कि विष्णु जी सहित दिल्ली के बहुत से गणमान्य लेखक संत के आसन तक पहुंच गये हैं । और दिल्ली सत्ता प्रतिष्ठान है। वहाँ से जो कुछ भी कहा जाता है वह किसी तरह जनपदों तक पहुंच ही जाता है । जनपदों के छोटे-मोटे लेखक इन बातों को प्रसाद की तरह ग्रहण करते हैं । मध्यप्रदेश मे जैसे कुछ हद तक तो भोपाल भी है । पुरस्कार से महरूम कई लेखक तो छोटे छोटे जनपदों के कवि हैं उन पर किसी की नज़र क्या पडेगी ? मेरा आशय यह बिलकुल नही है कि दिल्ली में या महानगरों मे समर्थ कवि -लेखक नहीं हैं लेकिन वहाँ भी कई लोग उपेक्षित हैं । अब धीरे धीरे पुरस्कारों की यह राजनीति खुलती जायेगी । जिन्होने तिलिस्म रचा है वे ही यह तिलिस्म तोड़ेंगे । वैसे भी किसे याद रहता है कि किसे कौनसा पुरस्कार मिला । और जिन्हे ढेरों पुरस्कार मिले हैं वे भी एक साँस में उनके नाम नहीं गिना सकते । और पुरस्कार मिल जाने से बेहतर रचने लगते हैं इसकी भी क्या गारंटी ? कुछ रचनाओं को बिना पढ़े ही पुरस्कार मिल सकता है और कुछ को पढ़ लिये जाने के कारण नही मिलता । कुछ को हाईकमान के इशारे पर मिल सकता है तो कुछ पर हाईकमान की नज़र नही पड़ी इसलिये नही मिल सकता । तो इस पर बयानबाज़ी तो चलती रहेगी और पुरस्कारों की निरर्थकता भी समय के साथ सिद्ध होती जायेगी ।अंतत: तो रचना ही शेष रहेगी ।धीरे धीरे कुक्ड स्टोरीज़ की तरह पुरस्कारों की असलियत खुलती जायेगी । नगाड़े तो खैर बजते ही रहेंगे ,सुने भी जायेंगे । नक्कारखाने में तूती की क्या औकात के बारे मे मै क्या कहूँ ?

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  5. prtiyogitaye aur purskar keval dvesh aur vaimansy ko hi jam dete hai .
    sur tulsi kbeer ke jmane me achha hi hua purskar nahi bante jate the .
    abhar

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