Wednesday, August 4, 2010

एक कविता

इतिहास-बाहर

यह तब की बात है
जब समय बे-लाइसेंसी हथियार या जाली पासपोर्ट की तरह
गैर-कानूनी था और जिनके पास वह पाया जाता,
वे अपराधी माने जाते थे
सारी घड़ियाँ जब्त कर ली गयी थीं
कैलेंडर और तारीखों वाली डायरी रखने पर पाबंदी थी
पत्र-पत्रिकाओं पर दिन-तारीख छापना
दंडनीय अपराध घोषित किया जा चुका था
मोबाइलों और कंप्यूटरों में से समय बताने वाले
सारे प्रोग्राम निकाले जा चुके थे
दिन-तारीख और सन्-संवत् बोलना कानून का उल्लंघन करना था
आज, कल, परसों जैसे शब्दों को देशनिकाला दिया जा चुका था

जैसे मद्य-निषेध हो जाने पर नशे के आदी
विकल्प के रूप में भाँग वगैरह पीते हैं
समय के आदी कुछ लोग चोरी-छिपे
धूप-घड़ी, रेत-घड़ी आदि बनाया करते थे
लेकिन वे देर-सवेर पकड़े जाते थे और मार डाले जाते थे

दुनिया को एक अदृश्य मशीन चलाती थी
जिसे बार-बार बिगड़ जाने की आदत थी
फिर भी वह चलती रहती थी, कभी बंद नहीं होती थी और कहते हैं--
बिगड़ जाने पर वह खुद ही खुद को सुधार लेती थी

अतः दुनिया समय की पाबंदी होने के बावजूद चल रही थी
अलबत्ता यह कोई नहीं जानता था
कि वह जा कहाँ रही थी और कर क्या रही थी

अखिल भूमंडल को नियंत्रित करती
वह अदृश्य मशीन मनुष्यों को ऐसे चलाती थी
जैसे वे स्वचालित यंत्र नहीं, मनुष्य ही हों
स्वायत्त, स्वाधीन, स्वतंत्र
वे उस मशीन का ऐसे गुणगान करते
जैसे कभी किया जाता होगा ईश्वर का
कि वह सर्वज्ञ है, सर्वव्यापी है, सर्वशक्तिमान है और निर्विकल्प
उसका कोई विकल्प न तो कभी था, न है, न होगा

यही था समय को गायब कर देने का मूलमंत्र
जिसे वह अदृश्य मशीन अहर्निश उच्चारती थी
यह बताने को कि लोग रहें निश्चिन्त
उनकी चिंता कर रही है वह अदृश्य मशीन!

--रमेश उपाध्याय

11 comments:

  1. उनकी चिंता कर रही है वह अदृश्य मशीन
    bahut sahi kaha aapne badhai

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  2. आपकी कविता तो पहली ही बार पढ़ी है मैने…रिटायरमेंट का पूरा फायदा उठा रहे हैं आप…आपकी सक्रियता हम जैसे युवा लोगों को प्रेरित करती है…

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  3. वाह सर्…………क्या बात है…………बेहतर दुनिया की तलाश ने आपसे कविता लिखवा ली या आप पहले से कवि थे…………………………।

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  4. कविता विषय को बहुत सलीके से खोलती है.
    अस्सी के दशक से एक नाम डायरी में लिखे फिरता हूँ 'रमेश उपाध्याय' मगर जाने किसने और क्यों लिखवाया था ?

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  5. aap kavita bhi likha karate the,kuch kuch maloom tha, par in dinon yeh rog aapko punah laga gaya, iski bhanak tak nahi mili
    waise yeh lagata hai ki aapko pyara rog laga hai
    is rog ke karan kuch kavion ke kheme men pareshani phailegi

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  6. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ..

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  7. bahut hi sundar rachna.. shukriya share karne ke liye....

    Meri Nayi Kavita aapke Comments ka intzar Kar Rahi hai.....

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  8. पहली बार आपकी कविता पढ़ी...

    अतः दुनिया समय की पाबंदी होने के बावजूद चल रही थी
    अलबत्ता यह कोई नहीं जानता था
    कि वह जा कहाँ रही थी और कर क्या रही थी

    यही चिंता करने की आवश्यकता है ...

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  9. बहुत अच्छी कविता ... यह कविता जॉर्ज ऑरवेल के 1984 की याद दिलाती है ।

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