उस दिन दुनिया ने छुट्टी ली
घड़ी सुबह के पाँच बजाकर बोली जागो, जागो!
दुनिया जागी, ख़ुद से बोली भागो, भागो, भागो!
बिस्तर से उठकर दुनिया ने देखा घना अँधेरा
यह कैसा अंधेर है, भाई, जब हो चुका सवेरा?
दुनिया बाहर आई, देखा, आसमान पर बादल
अंधड़ बनकर हवा चल रही मानो होकर पागल
ज़ोर-ज़ोर से पेड़ हिल रहे खड़खड़ करते पत्ते
अंधड़ दिल्ली से ज्यों सरपट जाता हो कलकत्ते
चमचम बिजली चमकी गड़गड़ बादल लगा गरजने
टीन की छत पर तडतड करता पानी लगा बरसने
छुट्टी लेकर दुनिया चढ़ गई अपने घर की छत पर
उछल-उछलकर खूब नहाई बारिश में जी भरकर।
--रमेश उपाध्याय
बाल विज्ञान पत्रिका 'चकमक' के दिसम्बर, 2008 के अंक में प्रकाशित
बहुत खूब सधुवाद्
ReplyDeleteछुट्टी लेकर दुनिया चढ़ गई अपने घर की छत पर
ReplyDeleteउछल-उछलकर खूब नहाई बारिश में जी भरकर।
अरे वाह !!
पढ़कर बहुत अच्छा लगा श्रीमान्
ReplyDeleteअच्छी कविता, बच्चों के लिए आनंद के साथ संदेश भी देती है।
ReplyDeleteआप से अनुरोध है कि यह वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें। इस से टिप्पणीकारों को परेशानी होती है।
आप की आज की पोस्ट का कंमेंट बाक्स नहीं खुल रहा है। उस का उपचार करें।
ReplyDeleteभूमंडलीय यथार्थ समझ आ गया। इस नाम से नहीं पर उस पर बहुत समय से काम किया जा रहा है।
आज एक बच्चे को ज़रूरत पड़ी बारिश पर एक कविता की तो यह कविता मैने उसे दे दी
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