मीडिया का जनतांत्रिक होना क्यों ज़रूरी है?
जनतंत्र जनतांत्रिक संस्थाओं के दम पर चलता है। लेकिन आज वे संस्थाएँ भीतर से स्वयं अपने कारणों से नष्ट हो रही हैं और बाहर से जनतंत्र-विरोधी शक्तियों द्वारा नष्ट की जा रही हैं। मीडिया जनतंत्र को बचाने, बेहतर बनाने और मजबूत बनाकर आगे बढ़ाने वाली शक्ति के रूप में स्वयं जनतांत्रिक होना चाहिए। उसे स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के जनतांत्रिक मूल्यों को अपनाकर चलना चाहिए और इन्ही मूल्यों का प्रचार-प्रसार करते हुए राज्य और समाज को जनतांत्रिक बनाने तथा बनाये रखने का काम करना चाहिए। मीडिया यह काम सत्यनिष्ठ, नीतिनिष्ठ और न्यायनिष्ठ होकर ही कर सकता है, क्योंकि ऐसा होने पर ही वह प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने के लिए भीतर से स्वयं नैतिक रूप से मजबूत और बाहर से जन-समर्थन पाकर शक्तिशाली बना रह सकता है।
लेकिन आज का मीडिया स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के जनतांत्रिक मूल्यों को ताक पर रखकर एक तरफ़ अपने मालिकों को अधिक से अधिक मुनाफा कमाकर देने का और दूसरी तरफ़ उनकी गैर-जनतांत्रिक और कई मायनों में जनतंत्र-विरोधी राजनीति को आगे बढ़ाने का काम करता है। ऐसी स्थिति में वह सत्यनिष्ठ, नीतिनिष्ठ और न्यायनिष्ठ नहीं हो सकता और अपनी नैतिक शक्ति खोकर कमज़ोर होता जाता है, दृढ़तापूर्वक प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाता और तरह-तरह के दबावों में तरह-तरह के समझौते करने को मजबूर हो जाता है। इस प्रकार भीतर से कमज़ोर मीडिया जन-समर्थन खोकर बाहर से भी कमज़ोर हो जाता है।
यही कारण है कि उस पर शासन और प्रशासन के तरह-तरह के दबाव पड़ते हैं, तरह-तरह के अंकुश लगाए जाते हैं (जैसे सीधी सेंसरशिप नहीं तो अखबार को मिलने वाले विज्ञापनों पर रोक) और सत्ताधारी दल के नेताओं को ही नहीं, उसे विरोधी दलों के नेताओं को भी खुश रखना पड़ता है। यहाँ तक कि पुलिस और गुंडों को भी। उन्हें नाराज़ करने का मतलब होता है अखबार या चैनल पर हमला, उसके दफ्तर में की जाने वाली तोड़-फोड़, उसके कर्मचारियों के साथ की जाने वाली मार-पीट, पत्रकारों की हत्याएं आदि। और जब ऐसी घटनाएं होती हैं, जनता मूक दर्शक बनी रहती है, क्योंकि वह जानती है कि मीडिया उसे क्या समझता है! जब अखबार अपने पाठक को और चैनल अपने दर्शक को सिर्फ़ उपभोक्ता मानकर चलेंगे, सूचना और समाचार को महज एक उत्पाद मानकर बनाने और बेचने का काम करेंगे और उसमें भी ग्राहक के साथ धोखाधड़ी करेंगे--यानी सूचना के नाम पर ग़लत सूचना देंगे, सच के नाम पर झूठ बेचेंगे, रिपोर्टिंग के नाम पर सनसनी और मनोरंजन के नाम पर फूहड़पन फैलायेंगे--तो उनकी पिटाई होते देख जनता उन्हें बचाने क्यों आयेगी?
अखबारों की प्रसार संख्या और उनकी बिक्री का बढ़ना या चैनलों की टी आर पी का बढ़ना और उसके आधार पर उन्हें अधिक विज्ञापनों का मिलना उनकी लोकप्रियता के बढ़ने का सूचक नहीं है। लोग जागरूक हो रहे हैं। उन्हें प्रामाणिक सूचनाओं, सही समाचारों, ज़रूरी विचारों और अच्छे मनोरंजक कार्यक्रमों की ज़रूरत है। लेकिन क्या मीडिया उनकी यह ज़रूरत पूरी कर रहा है?
मीडिया उनकी यह ज़रूरत जनतांत्रिक होकर ही पूरी कर सकता है।
--रमेश उपाध्याय
लोग जागरूक हो रहे हैं। उन्हें प्रामाणिक सूचनाओं, सही समाचारों, ज़रूरी विचारों और अच्छे मनोरंजक कार्यक्रमों की ज़रूरत है। लेकिन क्या मीडिया उनकी यह ज़रूरत पूरी कर रहा है?
ReplyDeleteसाधुवाद
aaderniye sir Ramesh upadhyaya ji
ReplyDeleteaapke katha saahitya ka pathak hone ke naate aap se mera purana parichay raha hai. aapki kahaniyon ke madhyam se maine anek baar bhartiye smaj aur uski samasyaon ko nikat se jana aur samjha hai. mera maanana hai ki aapki anek kahaniyan badalte hue bhartiye janvaad ke vibhinn aayamon se ru-ba-ru karaati hain. khaas taur par aapke pichle dono kahani sangrah 'docudrama tatha anya kahaniyan aur 'arthtantra tatha anya kahaniyan' is baat ki pushti karti hain.Mujhe yahi lagta raha hai ki aapki kahaniyan sachche arthon main jan pakshdhar kahaniyan hain. prantu abhi Pragtisheel Vasudha ke samkaleen kahani khand 2(jan-march 2009) main kathakaar asgar vajahat ki tippani main aapka naam dekha. ismen unhon ne likha hain " Ramesh Upadhyaya, vo vaise janvadi kahani likhte bhi nahin, unki kahaniyon ke liye koi aur shabd hona chahiye. Janvadi kahaniyan kahan likhte hain vo? agar unki kahaniyon ko janvadi maan lain to to aapko janvaad ki paribhasah badalni ya sunishchir karni padegi ki vah kya hai? iske liye janvad kya hai? yeh sunishchit hona chahiye. Janvad ke antargat main to yeh samjhata hoon ki ve kahaniyan jo jan ke paksh main hain janvadi kahaniyan hain. jo jan ke virodh main likhta ho vah gair janvadi hai. is tippani ko padh kar lagta hai ki ramesh upadhyaya jan virodhi kahani likhte hain. par aapki ek bhi kahani to majhe jan virodhi nahin lagti hai. Kya aap vahi kahnikaar ramesh upadhyaya hain jinka jikar asgar saahab ne kiya hai?
aapka
Rakesh