Friday, January 23, 2009

भूमंडलीय यथार्थवाद का मतलब

जब से मेरी किताब 'साहित्य और भूमंडलीय यथार्थ' प्रकाशित हुई है, मेरे कई पाठक मुझसे पूछ रहे हैं कि भूमंडलीय यथार्थवाद क्या होता हैकुछ ऐसे भी पाठक होंगे, जो यह जानना तो चाहते होंगे, पर मझसे पूछने में संकोच करते होंगेउन पाठकों के लिए मेरा कहना यह है कि आज के बदले हुए और तेजी से बदलते हुए यथार्थ के सन्दर्भ में यथार्थ को वर्ण, जाति, लिंग, नस्ल, राष्ट्र आदि के आधार पर खंड-खंड करके नहीं, बल्कि समग्रता में भूमंडलीय यथार्थ के रूप में देखना आवश्यक हैआज के साहित्य की सार्थकता और सोद्देश्यता के लिए एक नए ढंग के यथार्थवाद का विकास करना आवश्यक है, जिसे मैं भूमंडलीय यथार्थवाद कहता हूँ


भूमंडलीय यथार्थवाद का मतलब यह नहीं है कि हम अपने देश, अपने समाज या अपने निजी जीवन की कथा कहना बंद कर देंगेकथा तो हम अपने देश, अपने समाज और अपने जीवन की ही कहेंगे, लेकिन अपने यथार्थ को देखने का हमारा परिप्रेक्ष्य भूमंडलीय होगाकारण यह है कि अब हम इस परिप्रेक्ष्य के बिना अपने यथार्थ को समझ ही नहीं सकतेउदाहरण के लिए, आज की वैश्विक मंदी एक ऐसा भूमंडलीय यथार्थ है, जिसको समझे बिना आज हम अपने देश, अपने समाज और अपने जीवन में उत्पन्न हुई नई समस्याओं को समझ ही नहीं सकते


प्रश्न उठता है : भूमंडलीय यथार्थ तो बड़ी व्यापक, जटिल और गतिशील चीज़ है, उसे आत्मसात करके कथासाहित्य कैसे लिखा जा सकता है? इसका उत्तर खोजने में मुक्तिबोध हमारी सहायता कर सकते हैंभूमंडलीय यथार्थ को आत्मसात करने के मामले में उनकी 'ज्ञानात्मक संवेदन' और 'संवेदनात्मक ज्ञान' की अवधारणायें उपयोगी हो सकती हैं, तो उस यथार्थ का चित्रण करने के मामले में उनका निबंध 'डबरे पर सूरज का बिम्ब' हमें उचित प्रेरणा दे सकता हैजैसे पानी के छोटे-से डबरे पर भी सूरज का पूरा बिम्ब दिखाई देता है, वैसे ही छोटी-सी साहित्यिक रचना में बड़े और व्यापक यथार्थ का चित्रण किया जा सकता है

--रमेश उपाध्याय

2 comments:

  1. जानकारी के लिए शुक्रिया ..अच्छा लेख

    अनिल कान्त
    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  2. अच्‍छी जानकारी दी....आप सबों को गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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