जनता की राजनीतिक समझदारी
भारतीय जनतंत्र में--एक आदर्श जनतंत्र की दृष्टि से--चाहे जितने दोष हों, चुनावों में जनता के विवेक और राजनीतिक समझदारी का परिचय हर बार मिलता है। पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव में भी उसकी यह समझदारी प्रकट हुई। मसलन
१- जनता ने राजनीति में युवाओं को समर्थन दिया है, लेकिन स्पष्ट कर दिया है कि वह राहुल गाँधी जैसे युवाओं को पसंद करती है, वरुण गाँधी जैसे युवाओं को नहीं।
२- उसे बूढे-पुराने राजनीतिज्ञों से भी परहेज़ नहीं, लेकिन वे मनमोहन सिंह जैसे हों, लालकृष्ण अडवानी जैसे नहीं।
३- भाजपा ने भावी प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी को पेश किया, जबकि कांग्रेस ने राहुल गाँधी को। जनता ने नरेन्द्र मोदी को खारिज करके राहुल गाँधी को चुना।
४- सोनिया गाँधी, राहुल और प्रियंका का चुनाव प्रचार दूसरी पार्टियों के चुनाव प्रचार से भिन्न था। उसमें शालीनता और गंभीरता के साथ-साथ एक प्रकार के निस्स्वार्थ भाव का प्रदर्शन भी था, जैसे वे कह रहे हों कि हमें राहुल को प्रधानमंत्री बनाने की कोई जल्दी नहीं है। जनता ने इन बातों को पसंद किया।
५- जनता ने वाम दलों की 'गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा' वाली राजनीति को खारिज कर दिया है, क्योंकि यह नकारात्मक राजनीति है। वाम दल बहुत समय से विकल्प के नाम पर यही कहते आ रहे हैं कि यह नहीं चाहिए-वह नहीं चाहिए। वे यह नहीं बताते कि क्या चाहिए। जनता ने उन्हें बता दिया है कि सकारात्मक राजनीति करो और साफ़-साफ़ बताओ कि हम यह चाहते हैं, हम यह कर सकते हैं, और हम यह करेंगे। इससे उन्हें अपनी ताकत का सही अंदाजा रहेगा और वे 'तीसरा मोर्चा' जैसा भानमती का कुनबा जोड़कर सत्ता में पहुँचने की खामखयाली से मुक्त रह सकेंगे।
--रमेश उपाध्याय