Sunday, May 10, 2009

मल्लिका साराभाई

हमें इसी को बदलना है
(३ मई, २००९ को लिखी गई डायरी)

इस बार के आम चुनावों में जिस व्यक्ति ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है, वह है मल्लिका साराभाई। प्रसिद्द नृत्यांगना, जो गुजरात में गांधीनगर से प्रधानमंत्री बनने के इच्छुक लालकृष्ण आडवाणी के विरूद्ध चुनाव लड़ रही है। कहाँ शास्त्रीय नृत्य और कहाँ ऐसी भीषण गर्मी में गाँव-गाँव और घर-घर जाकर किया जाने वाला चुनाव प्रचार! कहाँ कला की साधना और कहाँ राजनीतिक संघर्ष! गुजरात में भाजपा का शासन है और वहां का मीडिया ज़्यादातर भाजपा का ही प्रचारक है। इसलिए वह मल्लका के विचारों और उसके चुनाव प्रचार से सम्बंधित समाचारों को दबा देता है, उसके विरुद्ध प्रचार करता है, उसकी हँसी उड़ाता है--कि देखो, यह औरत उस लौह पुरूष को टक्कर देने चली है, जो इस सीट से भारी बहुमत के साथ चुना जाता रहा है और इस बार का चुनाव जीत कर देश का प्रधानमन्त्री बनने वाला है!

मल्लिका को भी मालूम है कि वह जीतेगी नहीं। उसने यह जानते हुए ही चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। वह मौजूदा राजनीति को एक नए ढंग की राजनीति के ज़रिये चुनौती देने के लिए यह चुनाव लड़ रही है। वह एक नैतिक, सांस्कृतिक और सौन्दर्यात्मक मूल्यों वाली राजनीति की संभावनाओं को सामने लाने के लिए राजनीतिक रणक्षेत्र में उतरी है। वह किसी राजनीतिक दल के टिकट पर नहीं, स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रही है, क्योंकि मुख्यधारा के सभी दलों ने चुनावी राजनीति को भ्रष्टाचार और अपराधीकरण की राजनीति बना दिया है। उनके लिए यह केवल बहुमत पाने का गणित रह गया है, चाहे वह किसी भी तरीके से पाया जाए। अपने इस 'खेल' में उन्होंने देश के नागरिक को बिलकुल भुला दिया है। यही कारण है कि २००४ से २००९ तक की पिछली लोकसभा में ५३४ सांसदों में से १२८ सांसदों पर विभिन्न अपराधों के आरोप थे। मल्लिका पूछती है--"क्या यह शर्मनाक नहीं? हमें इसी को बदलना है।"

शाबाश, मल्लिका!

--रमेश उपाध्याय

5 comments:

  1. sabse zyada apradhi secular kahi jaanewali partiyon ke ticket par jeete the. isiliye shayad mallika ne secular partiyon se bhi kinara kiya. loktantra men aise prayason ka khulkar swagat karna chahiye.

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  2. मल्लिका ने बताया कि लिखने और बोलने से आगे बढकर एक सँस्कृतिकर्मी क्या कर सकता है।
    ग्लानिबोध से ग्रस्त हिन्दी का साहित्यसमाज क्या कर सकता है।

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  3. adarneey sir,aapka likha post mallika ji ke kam ko sahi pariprekshya men dekhne ki salah deta hai.mallika ji ka yah qadam tab zyada sarthak maloom padta hai,jab ham unhen aaryavart ke sabse parakramee aur hinsak daroga ke ilaqr men unhen sar utha kar taqat se chalte hue dekhte hain.

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  4. दंगो का नंगा यथार्थ आज भी गुजरात को अपने आगोश में निगलता सा महसूस होता है, और इन सब के सूत्रधार के खिलाफ मल्लिका साराभाई का संघर्ष काबिले तारीफ़ है, लेकिन एक सच यह भी है की छोटी छोटी बूंदे खुद से कोई सैलाब नहीं ला सकतीं, उन्हें खुद का एक राजनैतिक शक्ति तो बनना ही होगा...या किसी ऐसी ही राजनैतिक शक्ति से जुड़ना होगा...

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