Tuesday, April 6, 2010

एक पेड़ का आत्मकथ्य

आम रास्ते से कुछ हटकर खड़ा हूँ मैं

मैं आम रास्ते से कुछ हटकर खड़ा एक फलदार पेड़ हूँ, जो रास्ते पर आते-जाते हर किसी को दिखाई नहीं देता। लेकिन मैं यहाँ एकाकी या सबसे अलग-थलग नहीं खड़ा हूँ। मेरे आसपास तरह-तरह के कई पेड़ हैं और मेरी देखभाल करने वाले यहाँ कई मनुष्य हैं। मैं उन्हीं का पेड़ हूँ और वे मुझे प्यार करते हैं। सिर्फ इसलिए नहीं कि मैं उन्हें फल देता हूँ, बल्कि इसलिए भी कि मैं उन्हें अच्छा लगता हूँ। वे भी मुझे अच्छे लगते हैं और मैं भी उन्हें प्यार करता हूँ, क्योंकि मैं उन्हीं का उगाया हुआ पेड़ हूँ। वे जानते हैं कि फल से फल पैदा नहीं होता। बीज बोने से पेड़ उगता है और पेड़ बड़ा होकर फल देता है। बीज से पेड़ उगाने, उसे पूरा पेड़ बनाने और तब उससे वांछित फल प्राप्त करने की एक प्रक्रिया होती है, जो समय मांगती है, धैर्यपूर्वक अनवरत किया गया श्रम मांगती है, पेड़ उगाने और फल पैदा करने के ज्ञान-विज्ञान की समझ मांगती है, पेड़ को स्वस्थ और फलों को सुरक्षित रखने के लिए की जाने वाली चिंता और तत्परता मांगती है और मांगती है ऐसी मानवीय उदारता तथा वैचारिक प्रतिबद्धता, जो सिखाती है कि अपने पेड़ के फल केवल अपने लिए नहीं होते, बल्कि स्वयं से अधिक दूसरों के लिए होते हैं; अतः फल ऐसे होने चाहिए कि उन्हें खाकर दूसरे खुश हों और स्वस्थ रहें।

लेकिन मैं आम रास्ते से कुछ हटकर खड़ा एक फलदार पेड़ हूँ, जो रास्ते पर आते-जाते हर किसी को दिखाई नहीं देता। मेरे पास वे ही आते हैं, जो या तो यह जानते हैं कि मैं यहाँ हूँ और यहाँ आने पर उन्हें फल मिलेंगे, या वे आते हैं, जो अकारण या किसी भी कारण से इधर चले आते हैं और मुझे अचानक पा जाते हैं। मैं किसी को बुलाने नहीं जाता, लेकिन कोई मेरे पास आता है, तो मैं प्रसन्न होता हूँ। मुझसे फल पाने के लिए कोई मुझ पर पत्थर मारता है, या मेरे ऊपर चढ़ जाता है, तो मुझे बुरा नहीं लगता।

लोग मेरे फलों का क्या करते हैं--खुद खाते हैं, दूसरों को खिलाते हैं, बाज़ार में बेचते हैं, दान में देते हैं या फ़ेंक देते हैं--मैं इसकी परवाह नहीं करता। हाँ, मैं यह कल्पना अवश्य करता हूँ कि मेरे फल खाकर उनकी गुठलियों को लोग नया पेड़ उगने के लिए ज़मीन में बो देंगे, या उनके द्वारा यों ही इधर-उधर फ़ेंक दिए जाने के बावजूद मेरे बीज अपने-आप उग आयेंगे और पेड़ बन जायेंगे। न जाने कहाँ-कहाँ! न जाने कितने-कितने! और वे भी मेरी तरह फूलेंगे-फलेंगे!

कभी-कभी मेरे पास ऐसे लोग भी आ निकलते हैं, जो मेरी स्थिति पर विचार करते हुए कहते हैं--हाय, बेचारा! इतना अच्छा पेड़ यहाँ सबकी नज़रों से ओझल, उपेक्षित खड़ा है! रास्ते पर होता, तो इसे सब देखते, सब इसके पास रूककर इसकी छाया में बैठते और सब इसके मीठे फल खाते!

कोई-कोई ऐसी बातों का प्रतिवाद भी करते हैं। कहते हैं--अच्छा ही हुआ कि यह पेड़ आम रास्ते पर न हुआ। वहाँ होता, तो दिन-रात रास्ते पर से गुज़रते वाहनों से उड़ती धूल खाता और उनसे निकलने वाला धुआँ पीता। रास्ते से गुजरने वालों की नज़र में यह हमेशा रहता, तो वे इस पर लगने वाले फलों के पकने का इंतज़ार न करते, कच्चे ही तोड़ ले जाते। तब यह इतने सारे पके हुए मीठे फल कहाँ दे पाता !

मैं दोनों तरह की बातें चुपचाप सुनता हूँ। न दुखी होता हूँ न सुखी। हाँ, चलकर मेरे पास आने वालों और चले जाने वालों को देखकर कभी-कभी यह ज़रूर लगता है कि काश, मेरे भी पाँव होते, मैं भी चल सकता, कहीं भी जा सकता।

लेकिन मैं शिकायत नहीं करता। मैं जो हूँ, सो हूँ। जहां हूँ, वहां हूँ। और चलता तो मैं भी हूँ--क्षैतिज रूप में नहीं, तो ऊर्ध्वाधर रूप में। मेरी जड़ें पाताल की तरफ जाती हैं और फुनगियाँ आकाश की तरफ। और मेरे फल? मैं रास्ते से कुछ हटकर खडा हूँ, लेकिन ऐसा कभी नहीं होता कि मेरे फल मेरी डालियों पर ही लगे-लगे सूख जाएँ या नीचे गिरकर सड़ जाएँ। सबको नहीं, पर कुछ लोगों को पता है कि मैं यहाँ हूँ। वे आते हैं और मेरे फल खाते हैं। अपने साथ ले भी जाते हैं। मैं यहीं खडा रहता हूँ, लेकिन मेरे फल न जाने कहाँ-कहाँ पहुँच जाते हैं। और उनके बीज न जाने कहाँ-कहाँ उगकर पेड़ बन जाते हैं।

--रमेश उपाध्याय

5 comments:

  1. ''और चलता तो मैं भी हूँ--क्षैतिज रूप में नहीं, तो ऊर्ध्वाधर रूप में। मेरी जड़ें पाताल की तरफ जाती हैं और फुनगियाँ आकाश की तरफ।'' शब्दचित्र सा रोचक और जीवंत

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  2. Hamare aaspas kai faldar ped khade the, dheere dheere gayab hote ja rahe hai. Khush kismat hai ye ped aur hum ki kuchh hat kar khada hai. Lekin kab tak ?

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  3. ''और चलता तो मैं भी हूँ--क्षैतिज रूप में नहीं, तो ऊर्ध्वाधर रूप में। मेरी जड़ें पाताल की तरफ जाती हैं और फुनगियाँ आकाश की तरफ।''

    सुन्दर - पाताल की तरफ गहरे जाती जडें ही तो मजबूती का प्रतीक है।

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  4. इन दिनो मैं सड़क पर लगे पौधों को रोज पानी देता हूँ और सोचता हूँ जब वे बड़े होंगे तो यही कहेंगे ।

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