कभी-कभी मन अचानक और अकारण ही उदास हो जाता है। कारण तो अवश्य कुछ न कुछ रहता होगा, लेकिन समझ में नहीं आता। 20 नवंबर, 2010 की शाम कुछ ऐसा ही हुआ। मन भारी था और समझ में नहीं आ रहा था कि बात क्या है। कागज सामने था और कलम हाथ में, सो बिना कुछ सोचे-समझे कलम चलाने लगा। जो लिखा गया, उसे पढ़ा, तो लगा कि मैं स्वस्थ हो गया। जैसे आकाश पर जो बदली-सी छा गयी थी, हट गयी और धूप निकल आयी। जो लिखा गया, यह था:
महानगर के उजले तन पर फूटे फोड़े-सी वह बस्ती
बरसों-बरस पुरानी होकर भी अवैध थी जिसकी हस्ती
गत चुनाव में सहसा वैध हो गयी घोषित
नये घरों के नीले नक्शे किये गये सबको आवंटित
लोग खुश हुए, लगा कि जैसे सब सपने साकार हो गये
मानो मतदाता से बढ़कर वे खुद ही सरकार हो गये
लेकिन यह क्या? वोट डालकर ज्यों ही लौटे, बस्ती गायब!
बस्ती जलकर खाक हो गयी, सपने सारे खत्म हो गये
नये घरों के नीले नक्शे सारे जलकर भस्म हो गये
लेकिन तभी राख से उठती दिखी उसरती नयी झोंपड़ी
जो कहती थी--‘‘नीले नक्शे भस्म हो गये, हो जाने दो।
हम उन नक्शों के अनुसार नहीं बनती हैं।
जैसे बनती रहीं हमेशा, वैसे ही अब भी बनती हैं।’’
मैं नहीं जानता कि यह कविता है या कहानी या कुछ भी नहीं, पर इतना जानता हूँ कि जब बिना कुछ सोचे-विचारे ऐसा कुछ लिखा जाता है--अचानक और अनायास--तो उससे जो आनंद मिलता है, वह लिखने वाले के मन पर अचानक और अनजाने ही आ पड़े बोझ को हटाकर उसे स्वस्थ बनाने में बड़ा कारगर होता है।
--रमेश उपाध्याय
रमेश जी यह तो कविता भी है,कहानी भी और हकीकत भी। मुझे 1984 के आसपास की वह घटना याद आ गई,जब मप्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह ने रातों रात सारी झुग्गियों को अवैध से वैध घोषित कर दिया था। सच है कि वे भी चुनाव जीतने के लिए वैध की गई थीं।
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पक्के तौर पर लेखक लिखता ही शायद इसलिए है कि वह अपने अंदर की छटपटाहट को बाहर लाना चाहता है। छटपटाहट कम होगी तो जाहिर है उसे अच्छा लगेगा।
नीले नक्शे भस्म हो गये। वाह।
ReplyDeleteनीले नक्शे भस्म हो गये।
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छट्पटाहट तो बाहर आयेगी ही...
very nice
ReplyDeleteit reminded me a incident which i seen on TV where a person told a incident of Lal Quila after independence.
Mr. Jawharlal Nehru is coming on stage and Mahakavi Ramdhari Dinkar is their. Mr. Nehru just lost his balanced and Mr. Dinkar supported him.
Mr Nehru thanked him but the reply of Mr. Dinkar was very wonderful.
He said that whenever politics will fall literature will take care of it.
Your above poem/story is a mirror for politicians and loopholes of system.
नाटक का प्लॉट है...संपूर्ण...
ReplyDeleteइस पद की नाटकीयता...नट-नटी के संवाद...
लिख ही ड़ालिए सर जी...